रात चाँदनी का दरया हुई
चल चाँद की कश्ती में दूर चलें
बादलों के पीछे,
तारों की छाँव में…
प्यार का हसीन कसूर करें
आज दिल दिल के क़रीब है
आज मोहब्बत ख़ुशनसीब है
तेरा मुझसे मिलना,
इत्तिफ़ाक़ नहीं…
क्यों हम एक-दूसरे से दूर रहें
रात चाँदनी का दरया हुई
चल चाँद की कश्ती में दूर चलें
गुलाबी फूल दिलों में खिले हैं
नयी ख़ुशबू जिस्मों में घुले है
और कोई हुस्न नहीं,
शाम-सी रस्म नहीं…
हम निभाते इश्क़ के दस्तूर रहें
रात चाँदनी का दरया हुई
चल चाँद की कश्ती में दूर चलें
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
6 replies on “रात चाँदनी का दरया हुई”
रात चाँदनी का दरया हुई
चल चाँद की कश्ती में दूर चलें
बादलों के पीछे,
तारों की छाँव में…
प्यार का हसीन कसूर करें
nazar ji behtarin bhav,umada shabd,behad khubsurat nazm hai,tariff kam padh rahi hai,juth nahi bolungi.
taareef ka sukh kitano ko milata hai, yeh to aap kii ada hai…
Superb bro.. Kya baat hai.. sach me mast likhte ho
Thanks RoNnY…
subhan allah…..
I tried to think of something to supplement it, but drew a blank. Powerful imagery and poetics.
@ मधु जी, इतनी तारीफ़ का शुक्रिया!