रात का सिरा जाने कहाँ गिरा
हमने तो चाँद जलाया है
हमने तो चाँद जलाया है
रात गुज़री नहीं दिन आया नहीं
हमने तो ख़ाब सजाया है
हमने तो ख़ाब सजाया है
जब भी टूटा कोई सितारा
हमने तुम्हें ही माँगा है
दिल के झरोखों में आज भी
तेरी मोहब्बत का साया है
रात का सिरा, जाने कहाँ गिरा
हमने तो चाँद जलाया है
और हम ढूँढ़ते क्या जब
चेहरा तेरा नज़र आया है
ख़ाली था दिल का आशियाँ
दिल में तुमको बसाया है
रात गुज़री नहीं दिन आया नहीं
हमने तो ख़ाब सजाया है
रात का सिरा जाने कहाँ गिरा
हमने तो चाँद जलाया है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२
One reply on “रात का सिरा, जाने कहाँ गिरा”
bahut khub chand ki shitalta ko bhi jalaya ,par us mein bhi khwab sajaya hai.very nice