रंगे-हिना से भी चटख मेरी आँखों का रंग है
राह तक-तक के गहरा आया लहू का रंग है
क़ुरबत में भी थीं फ़ुरक़त की दूरियाँ उस से
साहब न पूछिए आज आलम का क्या रंग है
दिन उतर के जाये कहाँ तन्हाई के आगोश में
तन्हाई का रंग भी उससे जुदाई का रंग है
जब ख़ुद को मैं मिलता नहीं उसके पास मिलता हूँ
इस तरह मिला मेरे रंग में उसका रंग है
उधेड़ बुन में जुटा है मेरे तस्व्वुर का जहाँ
अश्आर-ए-‘नज़र’ में अयान उसका रंग है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३