रोशनी से दीवारों के साये मिटायेंगे
ढूँढ़कर वह सब लायेंगे, ढूँढ़ लेंगे
जो क़िस्मत की लकीरों में बँधा है
मुक़ाम का निशाँ हमने गढ़ा है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
रोशनी से दीवारों के साये मिटायेंगे
ढूँढ़कर वह सब लायेंगे, ढूँढ़ लेंगे
जो क़िस्मत की लकीरों में बँधा है
मुक़ाम का निशाँ हमने गढ़ा है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
One reply on “रोशनी से दीवारों के साये”
very nice.