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मेरा गीत

रोते हैं सब से छिपकर

जब-जब सनम तेरी यादें आती हैं
कैसे कहें कितना तन्हा कर जाती हैं
रोते हैं सब से छिपकर अँधेरों में
ख़ुद से इतना रुसवा कर जाती हैं

अँधेरी राहों-सा दिल सूना हो जाता है
जब आँखों में तेरा सपना टूट जाता है
ख़्यालों की राहों पर मुलाक़ातें होती हैं
मिलते हैं जब पुरानी बातें होती हैं

ख़्याल अरमानों की डोली सजाते हैं
उठता है दिल में धड़कनों का तूफ़ान
ख़ुशबू तेरी बहती है इन फ़िज़ाओं में
ढूँढ़ता हूँ राहों में तेरे पैरों के निशान

जब-जब सनम तेरी यादें आती हैं
कैसे कहें कितना तन्हा कर जाती हैं
रोते हैं सब से छिपकर अँधेरों में
ख़ुद से इतना रुसवा कर जाती हैं

हर आहट तेरा नामो-निशाँ देती है
तू आज भी सखी मुझमें रहती है
सितारों इन नज़ारों में तू दिखती है
अँधेरों से उजालों से तू बनती है

जब-जब सनम तेरी यादें आती हैं
कैसे कहें कितना तन्हा कर जाती हैं
रोते हैं सब से छिपकर अँधेरों में
ख़ुद से इतना रुसवा कर जाती हैं


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

2 replies on “रोते हैं सब से छिपकर”

अँधेरी राहों-सा दिल सूना हो जाता है
जब आँखों में तेरा सपना टूट जाता है
ख़्यालों की राहों पर मुलाक़ातें होती हैं
मिलते हैं जब पुरानी बातें होती हैं

simply beautiful song

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