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मेरा गीत

साँस रफ़्ता-रफ़्ता पिघल रही है

साँस रफ़्ता-रफ़्ता पिघल रही है
मोहब्बत मुझे मसल रही है
ख़्यालों की राह-राह जल रही है

चाँद से मुझको शिकवे बहुत हैं
आप से मेरे शादो-फ़रहत हैं
ख़ामुशी उसकी मुझे छल रही है

साँस रफ़्ता-रफ़्ता पिघल रही है

एजाज़े-चाँदनी बिखरा हुआ है
मुझको तस्व्वुर तेरा हुआ है
तन्हाई हर दम ख़ल रही है

साँस रफ़्ता-रफ़्ता पिघल रही है

सितारे अपनी पलकें झपक रहे हैं
तेरा हुस्न बेसुध तक रहें हैं
बुझी-बुझी मेरी नब्ज़ चल रही है

साँस रफ़्ता-रफ़्ता पिघल रही है

तुमको हर चेहरे में ढूँढ़ते हैं
बार-बार दिल के टुकड़े टूटते हैं
मंज़र यह शाम की ढल रही है

साँस रफ़्ता-रफ़्ता पिघल रही है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

4 replies on “साँस रफ़्ता-रफ़्ता पिघल रही है”

चाँद से मुझको शिकवे बहुत हैं
आप से मेरे शादो-फ़रहत हैं
ख़ामुशी उसकी मुझे छल रही है

साँस रफ़्ता-रफ़्ता पिघल रही है

एजाज़े-चाँदनी बिखरा हुआ है
मुझको तस्व्वुर तेरा हुआ है
तन्हाई हर दम ख़ल रही है

साँस रफ़्ता-रफ़्ता पिघल रही है

sahi, bahut khubsurat!

सितारे अपनी पलकें झपक रहे हैं
तेरा हुस्न बेसुध तक रहें हैं
बुझी-बुझी मेरी नब्ज़ चल रही है

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बहुत बढिया पंक्तियाँ
दीपक भारतदीप

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