साँझ-सवेरे ऐसे मेरे जैसे तेरी आँखों के दरपन
शबो-रोज़ यूँ बोझल हैं जैसे मेरे दिल की धड़कन
कली-कली ख़ुशबू-ख़ुशबू खिलने लगी उपवन-उपवन
खनक रही है पत्ती-पत्ती शुआ-शुआ है आँगन-आँगन
चाँदनी संग तारों के मुस्कुरा रही है छत-छत पर
जल रहा है सुलग रहा है ज़ख़्मी साँसों से तन-मन
सफ़र करते-करते दश्तो-सहरा से जी भर आया
दोनों तर आँखें सूख गयीं हैं टूट रहा है नील-गगन
जुज़ दर्द नुमाया क्या हो तन्हा आँखों में ‘नज़र’
तीरे-सैय्याद ने मार गिराया है इक और हरन
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३