सदफ़ है आँख और आँसू हुए गौहर
देखिए कहाँ ले जाके डबोयेगा भँवर
अश्को-लहू के विसाल से दरिया है
भिगो रही है पैराहन को इक लहर
यह शाम ढल के शब न हुई ऐ चाँद
तदबीर कोई आके बता जाये सहर
रूह जिस्म में जो ज़िन्दाँ है ‘नज़र जी’
निकलती है देखिए कैसे किस पहर
सदफ़: oyster, seashell; गौहर: perl; विसाल: meeting, union;
पैराहन: cloth; शब: night; तदबीर: trick; सहर: dawn; रूह, soul
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३