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मेरी ग़ज़ल

शाख़ों पर लौट आये मौसम कोंपलों के

शाख़ों पर लौट आये मौसम कोंपलों के
न क्यों फिर खिले, गुल दो दिलों के

यह उम्र जायेगी तेरे लिये ज़ाया
गर यह फ़ासले रहे यूँ ही मीलों के

तुम नहीं तो चाँदनी उदास रहती है
सब ताज़ा कँवल सूख गये झीलों के

ज़ब्रो-सब्र से क़ाबू आया है दिल
हर लम्हा बढ़ते हैं दौर मुश्किलों के

मैं लोगों की भीड़ में तन्हा रहता हूँ
मुझको रंग फ़ीके लगते हैं महफ़िलों के

सन्दली धूप की छुअन का यह जादू है
ख़ुशबू से भर गये जाम गुलों के

मैं यह सोच के जल जाता हूँ सनम
तुम्हें तीर चुभते होंगे मनचलों के

‘नज़र’ आज वाइज़ है बहुत ख़ामोश
क्या उसके पास हल नहीं मसलों के

ज़ाया: बेकार । कँवल: कमल के फूल । वाइज़: बुध्दिजीवी


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

8 replies on “शाख़ों पर लौट आये मौसम कोंपलों के”

दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीपावली आप के लिए सुख, समृद्धि और खुशियाँ लाए!

बहुत बढ़िया.

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

सन्दली धूप की छुअन का यह जादू है
ख़ुशबू से भर गये जाम गुलों के

मैं यह सोच के जल जाता हूँ सनम
तुम्हें तीर चुभते होंगे मनचलों के

‘नज़र’ आज वाइज़ है बहुत ख़ामोश
क्या उसके पास हल नहीं मसलों के

बहुत बढ़िया

दिनेश, समीर और मनविन्दर जी आप सभी की टिप्पणियों का आभार!

मैं लोगों की भीड़ में तन्हा रहता हूँ ,
मुझको रंग फ़ीके लगते हैं महफ़िलों के;
‘नज़र’ आज वाइज़ है बहुत ख़ामोश ,
“क्यों कि उसके पास भी हल नहीं इन” मसलों के|| [ मुआफी कि गुजारिश के साथ ]

आगमन का आभारी हूँ ,
मिल-जुल-मन का दीप पर्व
हर घर ,राह चौबारे आशा का ,
इक का दीप जालाओ ;
अबके ऐसे दीप पर्व मनाओ ,
ऐसे दीप-पर्व मनाओ ||

शुक्रिया कुन्नू और vishvamitra48, आपको भी दीपावली की हार्दिक बधाई!

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