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मेरी नज़्म

शाख़ों से उतरते थे जो फूल

इक बार फिर फ़साना लिख रहा हूँ
वही टुकड़ा पुराना लिख रहा हूँ

शाख़ों से उतरते थे जो फूल
उनको उठाके वह
अपने आँचल में रख लेती थी
पंखुड़ियों पे वह
जाने किसका नाम लिखके
अपनी किताबों में रखती थी

एक बार आधा-अधूरा देखा था
जाना पहचाना नाम था वह
फिर भी वह मुझको बताती नहीं थी
एक पहेली थी, जिसे बुझाती नहीं थी

रेशम-सी उसकी कलाइयाँ
जब मेरे हाथों में होती थीं
उसकी दोनों चंचल आँखें
मेरी आँखों में होती थीं

मैं हज़ार बहाने बनाता था
मैं ढेरों किस्से सुनाता था
फिर भी उसके होंठों पर
वह नाम नहीं आता था

एक बार उसने शाख़ पर
खिले हुए फूल पर ही
लिख दिया था वह नाम
और मुझसे कहा था
जाओ जाकर देख लो

यह तो मेरा ही नाम था
उसको मुझसे ही प्रेम था
वह प्यार आज भी है
आधा उसके पास
आधा मेरे पास, दो टुकड़ों में

‘जाने कहाँ बिछड़ के जी रहे हैं
दोनों टुकड़े एक मैं और एक वह’


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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