शाम यह प्यासी रहती है पल-पल
भीनी-भीनी उदासी रहती है पल-पल
न हँसती है. न रोती है. यह शाम कैसी है?
तेरी यादों में डूबी रहती है पल-पल
रंग सारे सिमटने लगे हैं लकीरों में
शाम बेरंग फ़ीकी रहती है पल-पल
ख़ामोश है क्यों, वह उदास है क्या?
शाम आँखों में भीगी रहती है पल-पल
चाँद की ख़ुशियाँ शाम के दर्द मत पूछो
टूटी-बिखरी हुई रहती है पल-पल
मैं यानि ‘नज़र’ ही जाने सबब जीने का
मौत तो आती-जाती रहती है पल-पल
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
7 replies on “शाम यह प्यासी रहती है पल-पल”
चाँद की ख़ुशियाँ शाम के दर्द मत पूछो
टूटी-बिखरी हुई रहती है पल-पल
” fantastic expressions”
Regards
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है…
हुई शाम उनका ख्याल आ गया वही जिंदगी का सवाल आ गया ………
चाँद की ख़ुशियाँ शाम के दर्द मत पूछो
टूटी-बिखरी हुई रहती है पल-पल
बहोत खूब सुंदर लिखा है आपने …..
ख़ामोश है क्यों, वह उदास है क्या?
शाम आँखों में भीगी रहती है पल-पल
ek udaasi si fail gayi…bahut badhiya likha hai.
दर्द में डूबी ग़ज़ल लिखी है इस बार आपने…आशा और विश्वाश पर लिखिए ना…बहुत अच्छा लिखते हैं आप.
नीरज
आप सभी का तहे-दिल से शुक्रिया! नीरज जी शीघ्र ही आप के लिए आशावादी काव्य प्रस्तुत करने की कोशिश करूँगा, अभी तो बस पुरानी डायरियों (सन् 2004) के पन्ने आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।