शाम से आँख में नमी-सी है
आज फिर आपकी कमी-सी है
उफ़क़-ए-सहर दिखी है
फिर रोशनाई सहमी-सी है
हर्फ़ उतरे सूख गये
ये आदत भी हमी-सी है
तुमको पाना नामुमकिन है
हमें ये ग़लतफ़हमी-सी है
अब्र उतरें हैं चाँद से
राह में फिर आँख थमी-सी है
मकान फिर ख़ाली हुआ है
उम्मीद आपकी बनी-सी है
हरा है तुमसे तस्व्वुर
यादों पर काई जमी-सी है
क्यों शाम ठहर गयी है
आज फिर रात चाँदनी-सी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’