प्यास का मारा जाये तो जाये किधर
इधर है का’बा सनमख़ाना उधर
दिन गिनते-गिनते गुज़र गयीं रातें
देखिए क्या असर दिखाए असर
वक़ालत क्या करें बीमारिए-दिल की
सद्-अफ़सोस में है ख़ानाए-जिगर
शीशाए-दिल जब निकले सींकर सरे’आम
नासेह ने कहा वाइज़ हुए हो ‘नज़र’
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४