सिफ़र के सिवा दिल में कुछ नहीं
जाना कहाँ है पता हमें कुछ नहीं
आसमाँ पर आशियाने का ख़ाब था
बनता टूटे आसमाँ में कुछ नहीं
हैं झील-सी गहरी शफ़्फ़ाक आँखें
जुज़ दर्द के इन में कुछ नहीं
दिल के ग़ुबार दफ़्न नहीं होते
पर अदू से मिलने में कुछ नहीं
मैं कब बदला हूँ जो वो बदलेगा
इन छोटी-छोटी बातों में कुछ नहीं
ये मेंहदी भी आँखों से उतर जाये
चाँद से शिक़ायत हमें कुछ नहीं
लबों तक मेरे गिरियाँ आ पहुँचे
क्या असर इन में कुछ नहीं
क्यों न करो तुम बात ‘नज़र’ की
हौसले भी कम उसमें कुछ नहीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३