सिफ़र को टोह लेते हैं दिले-यार में
अपनी भी दीवानगी कुछ कम नहीं
मैं और वह, दोनों कभी दोस्त थे!
सिफ़र= शून्य, zero
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
सिफ़र को टोह लेते हैं दिले-यार में
अपनी भी दीवानगी कुछ कम नहीं
मैं और वह, दोनों कभी दोस्त थे!
सिफ़र= शून्य, zero
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
4 replies on “सिफ़र को टोह लेते हैं दिले-यार में”
A blogger placed an interesting article today. Here’s a short portion:
सिफ़र को टोह लेते हैं दिले-यार में
अपनी भी दीवानगी कुछ कम नहीं…
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:http://vinayprajapati.wordpress.com/2008/03/18/sifar-ko-toh-lete-hain-dil-e-yaar-mein/
This is a Ping Back to this post… I do not know… Who is he? I believe… he did not know Hindi… but he praised it by saying INTERESTING…
अगर वाकई आप सिफर को टोह ले पा रहे हैं
तो फिर हमें बताएं…कि कैसे…टोहें…
भैया दुनिया के वैज्ञानिक लगे हैं सदियों से
टोह नहीं पाए…अभी तलक…
अगर आपने टोहा है…तो हमें भी बताएं…
वाकई तलबगार हैं और भी राह में…
इस प्राचीन मनोभावनाओं को अगर सिर्फ़ 100 सालों के विकास युग में जाना जा सकता तो कोई भी आज अकेला और दुखी नहीं होता, कौन वैजानिक है कैसे फ़ैसला करोगे… आज से 20 साल पहले एक मिंटिग की और कहा कि नवजात शिशु को माँ का ताज़ा दूध जनम के 10 दिन तक नहीं दिया जाना चाहिए उसमें कीटाणु होते हैं और आज बीस साल अरे वह हमारी ग़लती थी उसमें पोषक तत्व होते तो माँ अपने नवजात को वह पिलायेंगी…