बड़ी उम्मीद से मैं चला था तआक़ुब-ए-इश्क़ पर
और दीदार उसका मुझको ही घायल कर गया है
अब सुबह का चाँद और शाम का सूरज दोनों यहीं!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
बड़ी उम्मीद से मैं चला था तआक़ुब-ए-इश्क़ पर
और दीदार उसका मुझको ही घायल कर गया है
अब सुबह का चाँद और शाम का सूरज दोनों यहीं!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
3 replies on “तआक़ुब”
बड़ी उम्मीद से मैं चला था तआक़ुब-ए-इश्क़ पर
और दीदार उसका मुझको ही घायल कर गया है
बहुत बढिया!
lajaavb……..dost……..
आप सबका शुक्रिया!