न अब कोई सितम मेरी महब्बत में हो
है जो असली मज़ा वह तेरी सोहबत में हो
है जो दिन-रात राहत मुझे सो तुमसे है
बचा लेना तुम गर दिल मेरा मुसीबत में हो
छेड़-छाड़ ज़रूरी है कभी-कभी इख़लास में
थोड़ा बहुत रंग यह भी तबीयत में हो
तर लहू से ख़त मैं भी कभी तुमको लिखूँ
गर इस तरह ही दिल तेरा राहत में हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
One reply on “तदबीर”
आपका ब्लोग बहुत अच्छा है, पर क्या यह नारद , ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत पर पंजीकृत है. अगर नहीं है तो कराएँ और अगर है तो उनका लोगो लगाएं. वहाँ आपको पता और मित्र दोनों मिलेंगे. मेरी शुभकामनाएं
दीपक भारतदीप