तुमसे लेने हैं बदले गिन-गिनके
परेशाँ हूँ तानाए-अक़रबा सुन-सुनके
मौक़ा परस्त हूँ मौक़ा चाहिए मुझे
कुछ ऐसा करूँगा कि मरोगे घुन-घुनके
मुक़ाबिल हो तो बग़ल में नहीं आना
क़तराए-खूँ मैंने बादल किये धुन-धुनके
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
तुमसे लेने हैं बदले गिन-गिनके
परेशाँ हूँ तानाए-अक़रबा सुन-सुनके
मौक़ा परस्त हूँ मौक़ा चाहिए मुझे
कुछ ऐसा करूँगा कि मरोगे घुन-घुनके
मुक़ाबिल हो तो बग़ल में नहीं आना
क़तराए-खूँ मैंने बादल किये धुन-धुनके
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४