तन्हाई मिटाने दो
किस्से सुनाने दो
सुबह बह जायेगी
रोशनी उगाने दो
तितलियों के परों-सी
बारिश के घरों-सी
छोटी-सी ज़िन्दगी यह
किताब के हर्फ़ों-सी
आइने में अक्स है
वहाँ कौन शख़्स है
मेंहदी धुल गयी सब
मुझमें नक़्स है
बदली और पवन ने
गुल और चमन ने
मुझको बहकाया है
शिकारी और हरन ने
फ़ुर्क़त में क़ुर्बत जैसे
दर्द में मोहब्बत जैसे
वह याद आये मुदाम
दोस्ती में उल्फ़त जैसे
नाराज़ है कौन यहाँ
हमसे यह सारा जहाँ
किस-किसको मनाऊँ
इक यहाँ, इक वहाँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: ०५ जून २००३
2 replies on “तन्हाई मिटाने दो”
Hi ,
Whats this poem has to do with the gardening ?
Well My Friend,
In fourth verse of my poem there is a word ‘चमन’ [chaman] means garden and the translation of that verse is:
By cloud and wind,
By flower and garden,
I’m deceived by all
As hunter chases deer…