आँखों में नींद नहीं रहती
वीरान रातें जागता हूँ
दर्द से दर्द को चैन है
दूर-दूर तक ख़ामोशी बिखरी है
साँस लेने की वजह नहीं है
ख़ला बसी है हर धड़कन दिल में
मुतमइन-सा हर पल क़रीब आता है
और आँखों में जलता रहता है
खु़द से जो सवाल करता हूँ
उनके जवाब ही नहीं हैं
इक ख़फ़ा और खा़ली शाम
बाक़ी रह गयी है मेरी ज़िन्दगी में
आँसू खुष्क पड़ गए हैं
आँख रोती है गर तो जलती है
बुझाने का कोई सबब नहीं
बहाने के सौ बहाने हैं
तक़रीब* कोई बाक़ी नहीं अब
लफ़्ज़ ज़ुबाँ से सिल गये हैं
कौन समझे आधी-अधूरी बातें
जो बीते लम्हों में साँस लेती हैं
* reason
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’