तेरा हुस्न जैसे मंदिर में जलता दिया है
तेरे तब्बसुम ने जाने क्या जादू किया है
मेरे तस्व्वुर में तू है मेरे सपनों में तू है
दिल की धड़कनों को तुमने परीशाँ किया है
रातों को चैन से सोता था मैं सुकूँ से रहता था मैं
यह कैसी ख़ाहिशों को तुमने जगा दिया है
कहना चाहूँ जो कह न सकूँ तेरे बिन रह न सकूँ
मेरे साथ ही तुमने ऐसा क्यों किया है
दिन-रात मेरी साँसों में तेरे बदन की ख़ुशबू है
तुमने मेरे जिस्मो-जाँ को महका दिया है
अच्छे लगते हो तुम मुझको’ तुमसे प्यार है
दिल मैंने सनम तुमको अपना दिया है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४