तेरे हाथों में वह कंगन
आज जचते भी होंगे ना
खन-खन करते भी होंगे ना
तेरे माथे की वह बिंदिया
झिलमिलाती भी होगी ना
सितारे बुझाती भी होगी ना
आइना तुझको देखकर
फ़िदा होता भी होगा ना
सब वैसा ही होगा ना
तेरे आँगन की तितलियाँ
तू उड़ाती भी होगी ना
उसी तरह मुस्कुराती होगी ना
मेंहदी लगाकर सखियाँ
पिया की बातें करती होंगी
तुझे चिढ़ाती भी होगी ना
और फिर तू उनको
सपने सुनाती भी होगी ना
मुझे याद करती तो होगी ना
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२
One reply on “तेरे हाथों में वह कंगन”
very sweet fragrance of love.