तेरी जो ख़ाहिश करता हूँ
क्या कोई गुनाह करता हूँ
चाहे जो भी समझ ले तू
मैं तुझसे प्यार करता हूँ
यह उम्र ही ऐसी होती है
लोग कुछ बहक जाते हैं
मिलते हैं जब दो दिल
तन्हा जिस्म महक जाते हैं
महके-महके-से जिस्म में
मैं आधा-आधा रहता हूँ
चाहे जो भी समझ ले तू
मैं तुझसे प्यार करता हूँ
पलकें मूँदके मैं लेट गया
तू ही आँखों में रहती है
यह कैसी कशिश है तुझमें
जो मुझको खीचती रहती है
जिस पल से देखा है तुझे
तुझपर ही आहें भरता हूँ
चाहे जो भी समझ ले तू
मैं तुझसे प्यार करता हूँ
तेरी जो ख़ाहिश करता हूँ
क्या कोई गुनाह करता हूँ
चाहे जो भी समझ ले तू
मैं तुझसे प्यार करता हूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: ०९ मई २००३