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मेरा गीत

थकने लगी है मोहब्बत की शाम

थकने लगी है मोहब्बत की शाम
सफ़र के राही को न मिला है मक़ाम
बुझने लगी है मोहब्बत की रोशनी
रात का राही हो रहा है बदनाम

मोहब्बत की चाँदनी ने ओढ़ ली है
अमावस की काली चादर
पर नज़र नहीं आते दूर तलक
उनकी बेवफ़ाई के बादल
मोहब्बत के थकने लगे हैं क़दम
और जिस्म से निकलता है दम
होश आँखों में बाक़ी है मगर
पर दूर तक नहीं कोई हमसफ़र

थकने लगी है मोहब्बत की शाम
सफ़र के राही को न मिला है मक़ाम
बुझने लगी है मोहब्बत की रोशनी
रात का राही हो रहा है बदनाम

मोहब्बत का तूफ़ान रोके रुकता नहीं
राही का ग़म भी मिटता नहीं
भर-भरके प्याले पीने लगी है रुसवाई
नफ़रत के जाम पर जाम
लगने लगा है खुले-आम बाज़ार में
अब मोहब्बत का दाम
बेग़ाने हो गये हैं वह जो थे अपने
टूटकर बिखर गये हैं सारे सपने

थकने लगी है मोहब्बत की शाम
सफ़र के राही को न मिला है मक़ाम
बुझने लगी है मोहब्बत की रोशनी
रात का राही हो रहा है बदनाम


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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