तो अब दोस्त रह गये बस नाम के
हम अज़ीज़ है जब तक हैं काम के
मेरे माज़ी से चुरा ले जाता काश
कोई सारे टुकड़े दर्दे-आम के
दोस्ती में दिल जो अपना खोल दिया
पुरज़े बहुत उड़े दिले-नाकाम के
मेरी इक किताब में रखे हैं सभी
ऐ मोहब्बत तेरे किस्से शाम के
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३