Categories
ख़त/पयाम

तो उसका ये डर मिटे

बहुत दिन हुए ढलती रात पे सहर का सुनहरा रोगन मैंने चढ़ते नहीं देखा। तुम थे तो तुम्हें देखने के लिए इसे रोज़ बालिश्त-बालिश्त खेंचता था। उतरती थी धीरे-से रात, चाँद भी अलविदा कहके सूरज की किरनों में खो जाता था। तुम जब नहीं तो इन सब में मेरा दिल नहीं लगता… बदन में कुछ ज़ख़्म हैं जो साँस लेते रहते हैं। तुम्हारे जाने से जो हालत हुई है अब उससे उबरना चाहता हूँ मैं…। चाहता हूँ कि खुले आसमाँ के परों के नीचे बदन को साँसों से जाविदाँ कर दूँ। मगर जो ज़ख़्म वक़्त ने बुझाये हैं उन्हें लोग अपने नाख़ूनों से नोंच-नोंच के हरा कर देते हैं। आँखें लहू में भीग जाती हैं, साँस बदन में लहू-लुहान उतरती है, चुभती है सीने में एक निश्तर की तरह, मैं बस तड़प के रह जाता हूँ। चीखता हूँ… कोई सुनता नहीं इस बेकसी की पुकार को। चाहत है मुझे कोई साँस दे दे, ऐसी साँस जिसमें दोस्ती की ख़ुशबू हो, मेरे हाथों में अपना हाथ दे दे जिसमें उम्मीद का हौसला हो। क्या तुम बिन इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं… जो तुम्हारी कमी को पूरा कर दे, ये सोती हुई कुछ पाने की हवस को ज़िंदा कर दे। तुम नहीं मिलती तो क्या अपनी घुटन में ख़ुद के साथ-साथ मैं अपनी तमन्नाओं का गला भी घोंट दूँ? ये कहाँ तक सही है, तुम कुछ कहती क्यों नहीं? तुम नहीं मिलती तो ये दुआ करो कि मुझे कोई तुमसा दूसरा मिल जाये। मैं तुम्हारी ख़ुशी से ख़ुश हूँ तो तुम्हें मुझसे जलन क्यों है? किसी तरह तुम मेरा साथ दे दो। यूँ घुट-घुटके मुझसे अब और नहीं जिया जाता, निजात दे दो मुझे निजात…। अपने लिये न सही, मेरे अपनों के लिए, जिन्हें मुझसे उम्मीदें हैं। दूसरों के ज़ख़्म ढोते-ढोते, इक छाती सहलाने वाले हाथ की ज़रूरत मुझे भी महसूस होने लगी है। अब बस और नहीं हारना चाहता, जीतने का कोई बहाना चाहता हूँ यानि किसी बहाने तो जीतना चाहता हूँ, अपने लिए न सही अपनों के लिए। तुम-सी तो नहीं मगर फिर भी वो मुझे जीता सकती है, ऐसा ही लगता है। कुछ तो था जो उसमें जो मैं उसकी तरफ़ बेबस-सा होकर बस खिंचता ही चला गया। कहा भी उससे हाले-दिल, ख़ुतूत में लिखकर भी दिया उसे। उसकी हाँ सी लगती है मगर वो डरे-डरे कँप कँपाते होंठों में दबी-सी है। शायद रूबरू कुछ किसी वादे के साथ कहूँ तो उसका ये डर मिटे… काश! कह सकूँ कोई ये मौका दे दे।

[Dead Letter] to SS

Penned on 02 जनवरी 2005

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

12 replies on “तो उसका ये डर मिटे”

आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट सराहनीय है

Leave a Reply to Vinay Prajapati Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *