तुम हो जहाँ भी लौटके आ जाओ
तोड़के के रस्में सारी मुझसे मिल जाओ
नेक इरादे थे सच्चे वह वादे थे
हमने निभाये थे तुमने सिखाये थे
कोई जो कहता है यह ख़ाब है कोई
बतायें हम उसको यह यार है वही
चाँद-सितारों में आपस की दूरी है
हमसे न मिलने आये कैसी यह देरी है
मुझको यक़ीं है तुम आओगे कभी
वह वादे निभाओगे जो हैं दिल में कहीं
तुम हो जहाँ भी लौटके आ जाओ
तोड़के के रस्में सारी मुझसे मिल जाओ
आँखों में बसी हैं तस्वीरें तुम्हारी
मेरे पैरों में पड़ी हैं ज़ंजीरें जहाँ की
अपना मिलना क़िस्मत को नामंज़ूर हो गया
तेरी चाहत में मैं कितना मजबूर हो गया
ख़ाबों को देकर पैग़ाम हमने बुलाया है
लौट आयेंगे वह, पैग़ाम कोई लाया है
सूरज जो बुझ रहा है कल लायेगा सवेरा
पंक्षी चहचहायेंगे मिट जायेगा अंधेरा…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२