तुम जिस तरह से देखती हो मुस्कुराकर मुझे
मेरी रूह भी पाकीज़गी का एहसास करती है,
चलो यह बदशक़्ल आख़िरश पाकीज़ा तो हुआ!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
तुम जिस तरह से देखती हो मुस्कुराकर मुझे
मेरी रूह भी पाकीज़गी का एहसास करती है,
चलो यह बदशक़्ल आख़िरश पाकीज़ा तो हुआ!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
5 replies on “तुम जिस तरह से देखती हो मुझे”
subhan allah……kya kaha hai……
shukriya janaab!
shandar lekh hai badhiiiiiiiii………
shukriyaa arsh sahib!
hello friend i love meenu but wo mujh se door ja rahi hai please help me my id [email protected]