तुम जो मेरे होते न किसी से रश्क़ होता मुझे
यूँ घड़ी-घड़ी न तेरा ग़म भी पीता मुझे
किसी को देखा जो किसी से मिलते हुए मैंने
जला गया तन्हाई में तन्हाई का शोला मुझे
आज भी चुनता हूँ सीने में दिल का हर टुकड़ा
जो होता सीने में दिल रोज़ ही रोता मुझे
शामे-तन्हाई के रंग बड़े उदास हैं
तेरे हुस्न का खु़शरंग कभी भिगोता मुझे
आँख डबडबा आयी तेरे तस्व्वुर से
काश यूँ ही कोई कज़ा का गिरदाब डुबोता मुझे
कोई क्योंकर चाहे मुझे तुझसे सिवा
अगर जो कहीं चाह लेता तो गुनाह होता मुझे
अबस मेरे सीने में दर्द की साँस रह गयी
तुमको जो देखता ही तो न यूँ दर्द ढोता मुझे
एक ख़लिश रह गयी एक गु़बार रह गया
तुम जो मेरे होते न किसी से रश्क़ होता मुझे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’