बिन तुम्हारे मैं क्या हूँ तुम न समझोगे
आप तन्हाई की सदा हूँ तुम न समझोगे
तुम्हारे ग़मे-इश्क़ में जो चाँद पिरोता रहा
मैं साँस का वो टुकड़ा हूँ तुम न समझोगे
तुम्हारे दिल में जो हर लम्हा बहता है
मैं लहू का वही क़तरा हूँ तुम न समझोगे
तुमने जिसे बेकार समझकर फाड़ दिया
मैं उसी ख़त का टुकड़ा हूँ तुम न समझोगे
जब निगाहे-‘नज़र’ बेक़रार हो चली है
मैं किस मोड़ पे आ गया हूँ तुम न समझोगे
पुराना एक ख़तो-लिफ़ाफ़ा जलाकार आया
‘विनय’ अब तुम्हारा हूँ तुम न समझोगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
2 replies on “तुम न समझोगे”
galib woh samjhe hai na samjhenge meri bat
de un ko dil aur jo na de mujhko juban aur
galib nahiin ghalib… unke naam ki qadr karo… well thanks for beautiful sh’er…