तू जाके फिर ना आयी
मगर बार-बार आती रही तेरी याद
सबने सुनी कहानी मेरी
पर ना सुनी गयी मेरी फ़रियाद
मैं भूला नहीं तेरा चेहरा कभी
यह पागलपन है मेरा कहते रहे सभी
तेरे सपने आँखों में लेकर
मैं साथ तेरे जीता रहा तेरे बाद
तू जाके फिर ना आयी
मगर बार-बार आती रही तेरी याद
वो उजले सवेरे वो सुनहरी शामें
मैं ढूँढ़ता रहा हूँ ले-लेके तेरे नाम
आँखें राहों पर बिछाये अपनी
मैं तेरी तलाश में निकला तेरे बाद
तू जाके फिर ना आयी
मगर बार-बार आती रही तेरी याद
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
5 replies on “तू जाके फिर ना आयी”
अच्छा है. बेहतरीन है . बधाई.
आती तो ज़रूर गर प्यार से बुलाया होता -याद करते रहे -नाम लेते रहे -आँखे बिछाते रहे -कहानी सुनाते रहे – कभी यह न कहा कि
मुझको मानाने के लिए आजा -या तो मेरी उम्मीदों का दिया बुझाने आजा अथवा तो कभी न जाने के लिए आजा
ना मैं कभी उससे रूठा न वो मुझसे बस साथ छूट गया, फिर कौन किसे मनाता ब्रिज साहब!
This ia really good Vinay….
उम्र भर पढता रहूँ ऐसी कहानी देदो, एः मेरे यार कोई शाम सुहानी देदो