उदास परछाइयों की तन्हा भीड़ में भटक रहा हूँ
धूल की तरह तेरे लिए दर-ब-दर भटक रहा हूँ
आइना हूँ मैं कोई जिस्म नहीं हूँ हदों तक नज़र हूँ
हर लम्हा नज़र-नज़र तेरे लिए चिटक रहा हूँ
ख़ाली दिल में ख़ाली मर्तबान की तरह सूनापन है
लिए इस ख़ालीपन को नस-नस में भटक रहा हूँ
क्या हुआ किस उम्मीद की बात करते हो तुम
पिसे काँच की तरह अपने हलक़ में खटक रहा हूँ
‘नज़र’ दर्द से कहो यूँ न बिलखे ख़ामोश रातों में
उसके पास तो घर है मैं अपने लिए भटक रहा हूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
7 replies on “उदास परछाइयों की तन्हा भीड़”
दिनांक 16 /12/2012 (रविवार)को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
umda prastuti ;क्या हुआ किस उम्मीद की बात करते हो तुम
पिसे काँच की तरह अपने हलक़ में खटक रहा हूँ
‘नज़र’ दर्द से कहो यूँ न बिलखे ख़ामोश रातों में
उसके पास तो घर है मैं अपने लिए भटक रहा हूँ
Thanks, Madhu ji! 🙂
शुभप्रभात :))
‘नज़र’ दर्द से कहो यूँ न बिलखे ख़ामोश रातों में
उसके पास तो घर है मैं अपने लिए भटक रहा हूँ
बेमिसाल शेर …. ला-जबाब प्रस्तुति !!
Thanks, Welcome Vibha ji! 🙂
खूबसूरती से दर्द को बयान किया है ….
Thanks, Welcome Sangeeta ji! 🙂