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मेरी ग़ज़ल

उदास परछाइयों की तन्हा भीड़

उदास परछाइयों की तन्हा भीड़ में भटक रहा हूँ
धूल की तरह तेरे लिए दर-ब-दर भटक रहा हूँ

आइना हूँ मैं कोई जिस्म नहीं हूँ हदों तक नज़र हूँ
हर लम्हा नज़र-नज़र तेरे लिए चिटक रहा हूँ

ख़ाली दिल में ख़ाली मर्तबान की तरह सूनापन है
लिए इस ख़ालीपन को नस-नस में भटक रहा हूँ

क्या हुआ किस उम्मीद की बात करते हो तुम
पिसे काँच की तरह अपने हलक़ में खटक रहा हूँ

‘नज़र’ दर्द से कहो यूँ न बिलखे ख़ामोश रातों में
उसके पास तो घर है मैं अपने लिए भटक रहा हूँ


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

7 replies on “उदास परछाइयों की तन्हा भीड़”

दिनांक 16 /12/2012 (रविवार)को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

umda prastuti ;क्या हुआ किस उम्मीद की बात करते हो तुम
पिसे काँच की तरह अपने हलक़ में खटक रहा हूँ

‘नज़र’ दर्द से कहो यूँ न बिलखे ख़ामोश रातों में
उसके पास तो घर है मैं अपने लिए भटक रहा हूँ

शुभप्रभात :))
‘नज़र’ दर्द से कहो यूँ न बिलखे ख़ामोश रातों में
उसके पास तो घर है मैं अपने लिए भटक रहा हूँ
बेमिसाल शेर …. ला-जबाब प्रस्तुति !!

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