उदास शाम है और आँखों में नमी है
मैं बहुत तन्हा हूँ तेरी कमी है
आँखें हैं आँसुओं का एक समन्दर
दिमाग़ में यादों की बर्फ़ जमी है
बह रहा है वक़्त बहुत तेज़
ख़ाली सीने में इक साँस थमी है
क्या जला है शबभर ख़्यालों में
शायद मुझे कोई ग़लतफ़हमी है
मुक़र जाता है ख़ुदा अपनी बात से
क्या वह भी कोई आदमी है?
मेरे प्यार को गर न मिलें तेरी बाँहें
तो मौत ही मुझको लाज़मी है
जो देखकर मुस्कुराते हैं मुझको
उनके मन में गहमागहमी है
सर्द बहुत बढ़ गयी है दिल में
ऊदी-ऊदी धूप बहुत सहमी है
क्या बुझाता रहा हूँ आज सारा दिन
क्यों दर्द की छुअन रेशमी है
किसी चोट से मेरा दिल टूटा नहीं
तेरी यादों से हुआ ज़ख़्मी है
मैंने उफ़क़ में ढूढ़े हैं तेरे रंग
शफ़क़ आज कुछ शबनमी है
सूखे हुए कुछ फूल पड़े हैं ज़मीं पर
फूलो-शाख़ का रब्त मौसमी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
10 replies on “उदास शाम है और आँखों में नमी है”
बहुत खूब ! विनय भाई !
bahut he acchi najam hai..dil ko chhuti hai….
मुक़र जाता है ख़ुदा अपनी बात से
क्या वह भी कोई आदमी है?
बहोत खूब साहब क्या बात कही है आपने वाह….ढेरो बधाई,…
अर्श
बहुत अच्छा कहा है आपने…बधाई
नीरज
विवेक, अमित, अर्श और नीरज जी आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया!
बहुत ही सुंदर भाव.
धन्यवाद
“दिमाग़ में यादों की बर्फ़ जमी है”
क्या बात है !
भाटिया जी और अभिषेक जी आप दोनों का शुक्रिया
वाह क्या खूबसूरत पंक्तियाँ लिखी हैं | सच में प्यार के एहसास को जगा देती हैं | पढ़ के ऐसा लगा जैसे कुछ पुराने जख्म फ़िर से ताज़ा हो गए | कुछ यादें फ़िर से खिल उठी !
अम्बुज जी धन्यवाद!