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मेरा गीत

उड़ते हुए दिन, दबी हुई रातें

उड़ते हुए दिन, दबी हुई रातें
सीने में बजती हैं…
ओस की सूखी बूँदें किसकी राहें तकती हैं

पत्थर है दिल फिर भी गलता है
बहता हुआ वक़्त धीरे चलता है
काँच की परछाईं-सा है कुछ पीछे-पीछे
महसूस नहीं होता कुछ आँखें मीचे-मीचे

उड़ते हुए दिन, दबी हुई रातें
सीने में बजती हैं…
दो-दो शक्लें टूटे-से आइने में बहती हैं

बीती हुई गलियों में पाए पड़े हैं
कुछ महके हुए-से साये खड़े हैं
बातें करती, उजली-उजली पुरवाई है
मेरे आँगन में सूखे कुछ लम्हे लायी है

उड़ते हुए दिन दबी हुई रातें
सीने में बजती हैं…
ऐसे ही दो टुकड़ों पर साँसें जीती रहती हैं


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: ३१ मई २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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