उसकी आँखों में मधुशाला है
उसका दिल एक शिवाला है
आज हाथों में वो हाथ नहीं
सिर्फ़ मदिरा का प्याला है
मैं जब गिरा लड़खड़ाके
उसने ही मुझको सँभाला है
उसके ग़म में कोई छत न मिली
मुझे धूप की चादर ने पाला है
वो करता है मुझसे मोहब्बत
पर दिल में वहम का जाला है
उसने लब सीं लिए हैं क्योंकि
दिल दुनिया का बहुत काला है
वो परवाज़ करता है ख़ाब में
उसके क़फ़स पे इक ताला है
उसने दिल की बात कहने को
अच्छा तीरे-हुनर निकाला है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२