मैंने कभी उससे बात नहीं की मगर क्यों उसकी आँखें मुझको पहचानती हैं?
क्या जानती हैं मेरे बारे में, क्या जानना चाहती हैं उसकी आँखें?
कभी आश्ना तो कभी अजनबी लगती हैं उसकी आँखें, मानूस आँखें!
उसकी आँखें पहचानती हैं मुझे, मगर कुछ कहती नहीं…
वो गुज़रती है जितनी बार सामने से –
एक बार तो मुड़ती हैं, उठके झुक जाती हैं, उसकी आँखें
उनकी कशिश कमसकम एक दफ़ा तो अपनी जानिब खींच ही लेती है
मेरी बेज़ुबाँ आँखें चाहकर भी उससे कह नहीं सकतीं कि…
उसकी आँखें कितनी ख़ूबसूरत हैं, उसकी आँखों की कोई तफ़सील नहीं…
(DB के नाम)
Penned on 31 Dec 2004
3 replies on “उसकी आँखें”
Lucky DB!
So sweet, Vinay, and full of love!
Lucky DB!
All the best Vinay 🙂
thanks but no way to go to year 2004… 😀