इक बोझ सीने पे उठा रखा है
तेरा ग़म सीने से लगा रखा है
ज़िन्दगी मेरा वुजूद मिटाती है
एक ये दर्द भी दबा रखा है
दिल मेरा इक नासूर बन गया
चराग़े-इश्क़ जला रखा है
चिंगारियाँ-सी उठती हैं तन में
ख़ुद को अश्कों में डुबा रखा है
तुम्हें खो न दूँ इसीलिए शायद
ख़ाहिशों को जी से जुदा रखा है
तुम आओगे ज़रूर इस राह से
राह पर फूलों को बिछा रखा है
जिसकी तक़दीर तुम न हो शीना
ऐसी ज़िन्दगी में क्या रखा है
‘नज़र’ ढूँढ़ता है तुझे हर गाम
उसने तेरा नाम ख़ुदा रखा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३