वबाए-इश्क़ से नजात कैसे हो
नफ़रत हो तब इल्तिफ़ात कैसे हो
जन्नत है गर जहन्नुम-सी
फिर तेरे अग़ियार हो नशात कैसे हो
मशगूल हूँ इस क़दर तुममें
अपनी मौत से भी एहतिआत कैसे हो
आइन्दा से नाफ़िक्र हूँ आज मैं
मुझसे बेहतर अदू की बात कैसे हो
‘नज़र’ पे ख़ुदा भी न रहम खाये
गर उसे हो भी तो इख़्तलात कैसे हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३