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मेरी ग़ज़ल

वह चाँद वह सुहानी शाम फिर आये

वह चाँद वह सुहानी शाम फिर आये
गुलाबी आँखों का सलाम फिर आये

मैं भटक रहा हूँ अंधेरी गलियों में
चर्ख़ से वह इल्हाम फिर आये1

सुकूनो-सबात2 मेरा सब खो गया है
कैसे मेरे दिल को आराम फिर आये

बैठूँ जब मैं किसी बज़्मे-ग़ैर3 में
मेरे लबों पे तेरा नाम फिर आये

बहुत उदास है यह शाम का समा
शबे-दिवाली4 की धूमधाम फिर आये

मैं वह ऊँचाइयाँ5 अब तक नहीं भूला
वह मंज़िल वह मुकाम फिर आये

वह छुपके बैठा है दुनिया के पर्दे में
मुझसे मिलने सरे’आम फिर आये

दास्ताँ जो अधूरी रह गयी है ‘नज़र’
उसे पूरा करने वह’ मुदाम6 फिर आये

शब्दार्थ:
1. आसमाँ से ख़ुदा का आदेश फिर आये, 2. आराम और चैन, 3. ग़ैर की महफ़िल, 4. दीवाली की रात, 5. सफलता , 6. सदैव


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

11 replies on “वह चाँद वह सुहानी शाम फिर आये”

वह छुपके बैठा है दुनिया के पर्दे में
मुझसे मिलने सरे’आम फिर आये

” very daring and wonderful words..”

Regards

दास्तां जो अधूरी रह गयी नज़र वो पूरी करने का मुदाम फिर आये बहुत खूब आपकी ये तमन्ना पूरी हो बधाई

वह चाँद वह सुहानी शाम फिर आये
गुलाबी आँखों का सलाम फिर आये

मैं भटक रहा हूँ अंधेरी गलियों में
चर्ख़ से वह इल्हाम फिर आये1

सुकूनो-सबात2 मेरा सब खो गया है
कैसे मेरे दिल को आराम फिर आये
बहुत खूबसूरत

Hello Vinay ji,

वह छुपके बैठा है दुनिया के पर्दे में
मुझसे मिलने सरे’आम फिर आये

Gd Morg. Aap ka jawaab nahi saach mein.

वह छुपके बैठा है दुनिया के पर्दे में
मुझसे मिलने सरे’आम फिर आये

bahut achchha kaha hai aapne…Badhaii

वह चाँद वह सुहानी शाम फिर आये
गुलाबी आँखों का सलाम फिर आये

मैं भटक रहा हूँ अंधेरी गलियों में
चर्ख़ से वह इल्हाम फिर आये1

बहुत उदास है यह शाम का समा
शबे-दिवाली4 की धूमधाम फिर आये

मैं वह ऊँचाइयाँ5 अब तक नहीं भूला
वह मंज़िल वह मुकाम फिर आये

बहुत प्यारे शेर हैं, बधाई।

मैं भटक रहा हूँ अंधेरी गलियों में
चर्ख़ से वह इल्हाम फिर आये1

बहुत उदास है यह शाम का समा
शबे-दिवाली4 की धूमधाम फिर आये

बहुत खूबसूरत

वह छुपके बैठा है दुनिया के पर्दे में
मुझसे मिलने सरे’आम फिर आये
बहुत ही खुबसुरत शॆर कहे .
धन्यवाद

hai najar adhuri par khwab pura,
parwat ke peeche hai suraj ka dera,
nadiyon mein kal_kal,
badal ka dekho faja mein basera,
duniya ke parde hai uske peeche,
wo to duniya ke age khadha hai,
samjhe dost wo to sabse badha hai

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