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मेरी ग़ज़ल

वह जब भी इस गली इस डगर आये

वह जब भी इस गली इस डगर आये
मेरी ज़िन्दगी की सहर1 बनकर आये

शबो-रोज़2 जलता हूँ मैं इन अंधेरों में
वह मेरे लिए कुछ रोशनी लेकर आये

आया था पिछली बार अजनबी बनकर
अब कि बार वह मेरा बनकर आये

हूँ बहुत दिनों से शाम की तरह तन्हा
कोई मंज़र-ए-सोहबत3 नज़र आये

दरवाज़े पे खड़ा हूँ इक यही आस लिये
वह मेरी बे-सदा4 आह सुनकर आये

मंदिर-मस्जिद जाकर सर नवाया5
अब तो मेरी दुआ में कुछ असर आये

खिले हैं गुलशन में हर-सू6 गुल-ही-गुल
वह आये तो मेरा चेहरा निखर आये

मुद्दत से देखी नहीं शुआहा-ए-फ़ज़िर7
आँखें खोलूँ गुलाबी मखमली सहर आये

शफ़क़-ओ-उफक़8 के रंग कैसे देखूँ
मेरी आँखों में कोई पुराना मन्ज़र आये

मैं तंग गलियों में तन्हा-सा फिरता हूँ
क्यों मेरे ख़ुदा को रहम मुझ पर आये

या दिल यह धड़कना बंद कर दे मेरा
या इस दिल पर मुझ को ज़बर9 आये

तुझे भेजूँ किस पते पर पयाम10 अपना
कि मुझ तक मेरी कुछ ख़बर आये

मैंने नहीं बदला अपना घर आज तक
उम्मीद कि वह शायद कभी घर आये

मिलें उसको हर तरह से ख़ुशियाँ हमेशा
और उस की हर बला मेरे सर आये

है बहुत प्यासी यह ज़मीन-ए-दिल11
कभी मुझ पर भी बारिश टूटकर आये

ऐ ‘नज़र’ उस को कुछ न कहे दुनिया
हो यह कि हर इल्ज़ाम मुझ पर आये

शब्दार्थ:
1. सुबह; 2. रात और दिन; 3. दोस्ती का मंज़र; 4. मौन; 5. सर झुकाया; 6. सभी ओर; 7. भोर की (लालिमा युक्त) किरणें; 8. सुबह और शाम (के आकाश का गुलाबी रंग); 9. नियंत्रण; 10. संदेश; 11. दिल रूपी पृथ्वी


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

14 replies on “वह जब भी इस गली इस डगर आये”

बहुत खूब। एक तुकबंदी ये भी-

ना-उम्मीद था कि तेरा दीदार होगा।
बाँछे खिली जब तुम बेखबर आये।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
[email protected]

subah subah kis naazuki she’re gazal ko padhane ka maukaa milaa waah waah.. saare hi ash’aar behd khubsurat lage…badhaayee

arsh

Good Morng. Vinay ji,

Har sabd bahut sundar hain, sabd kam hain aapki tariff main, bahut badhaii aapko.

विनय जी गुजरते हुए आपके ब्लॉग से मुलाकात हो गयी…..
और इस सुन्दर सी गजल ने मन मोह लिया….

“आया था पिछली बार अजनबी बनकर
अब कि बार वह मेरा बनकर आये”

बहुत खूब. आपकी यह रचना पढकर तो वाकई में मजा आ गया. यूँ हीं खूबसूरत रचनाये गढते रहे.आभार.
गुलमोहर का फूल

good morng. vinay ji

kai baar aapae ye geet pada bahut sundar hain sach main, isliye fir se comment kar rahi hu, aapke khayalaat bahut hi khub hain, par har naazm mein Dard hota hain, aisa q bhala.
Or ek baat har naazm aapny 2004 mein likhi ye bhi gaur kiya hain meiny, sayad aap ke golden period tha vo, mujhy laga aisa.
Aap ke tariif mein har sabd bhaut kam hain, aap ko bhaut bhaut badhai.

Manju”Mahiraj”

मैं अभी अपनी पुरानी रचनाएं ही पढ़वा रहा हूँ गोल्डेन पीरियड जैसे कोई चीज़ है या नहीं यह कहना ज़रा मुश्किल है…

धन्यवाद।

तेरे बदन की कशिश का है जादू
देखकर तुझ को मचल रहा हूँ

bahut khoob

waah…bhaiya…waah…
shuruaat se lekar last tak bas padhta hi reh gaya…
puri tarah se baandh kar rakh diya is ghazal ne…
ek ek she’r to bahut khoob h….

liked it a lot… or agar apne tarike se kahun to
fida ho gaya aapki is ghazal pe to…

है बहुत प्यासी यह ज़मीन-ए-दिल
कभी मुझ पर भी बारिश टूटकर आये

Enjoyed it.

Thank you.

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