वह मुझको मुआफ़1 रखे दुनिया के मामलों से
मैं अब कभी किसी और से इश्क़ न करूँगा
दिल मेरा चाहे हो जाये टूटकर टुकड़े-टुकड़े
इस ग़म में आँखों को तर ऐ अश्क! न करूँगा
जो देखा है उस का चेहरा मैंने दो ही रोज़
इस बात का अपने ख़ुदा से रश्क2 न करूँगा
मेरे दिल में है तेरे ख़ाबों का इक भँवर-सा
जो हुआ यह दरया सो उसे खुश्क3 न करूँगा
दिल की दहलीज़ के भीतर रहेंगे मेरे ख़ाब
ख़ाबों को ज़ाहिर कभी मानिन्दे-मुश्क4 करूँगा
शब्दार्थ:
1. माफ़, forgive; 2. रश्क़ या रश्क, ईर्ष्या, envy; 3. सूखा, dry; 4. महक की तरह, like the smell
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
11 replies on “वह मुझको मुआफ़ रखे दुनिया के मामलों से”
प्यार बिना क्या जीना? किसी की पँक्तियाँ हैं कि-
अक्ल तय करती है लम्हों का सफर सदियों में।
इश्क तय करता है लम्हों में जमाने कितने।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
[email protected]
बहुत खूब, विनय जी। अच्छी रचना।
बहुत बढ़िया बिंदास रचना . धन्यवाद.
मेरे दिल में है तेरे ख़ाबों का इक भँवर-सा
जो हुआ यह दरया सो उसे खुश्क3 न करूँगा
waah kya baat hai,bahut khub.gumm mein chahe pighal jaun,teri yaad nahi mit sakti.
बहुत ही अच्छी रचना…भाषा थोडी सरल होती तो और भी मज़ा आता…!मेरी शुभकामनायें!
badhaayee sahib badhiyaa she’r kahne ke liye…
arsh
बहुत उम्दा!
Good Morng. Vinay ji,
Ye lines:-
वह मुझको मुआफ़1 रखे दुनिया के मामलों से
मैं अब कभी किसी और से इश्क़ न करूँगा
जो देखा है उस का चेहरा मैंने दो ही रोज़
इस बात का अपने ख़ुदा से रश्क2 न करूँगा
Bahut khubsoorat hain, bahut dard hain ismy, aap bahut sundar likhty hain. God bless
EK BAR FIR SE YE RACHANA KHICH KE LEKAR AAYEE MUJE ISKE KAHAN ITNE ACHHE HAI…EK BAAR FIR BADHAYEE,,,
ARSH
आप सभी काव्य प्रेमियों का बहुत-बहुत शुक्रिया
nice