वह मुस्कुराया और रूठा भी
वह सच्चा है और झूठा भी
दूर था तो क़रीब था दिल के
उसकी बात से दिल टूटा भी
इक ख़ाब माना हमने जिसको
वह छाला बनकर फूटा भी
जिस कशिश पे हम मर बैठे
उस कशिश ने दिल लूटा भी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
वह मुस्कुराया और रूठा भी
वह सच्चा है और झूठा भी
दूर था तो क़रीब था दिल के
उसकी बात से दिल टूटा भी
इक ख़ाब माना हमने जिसको
वह छाला बनकर फूटा भी
जिस कशिश पे हम मर बैठे
उस कशिश ने दिल लूटा भी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
11 replies on “वह मुस्कुराया और रूठा भी”
इक ख़ाब माना हमने जिसको
वह छाला बनकर फूटा भी
” भावुक और दर्द भरे शब्द..’
Regards
दूर था तो क़रीब था दिल के
उसकी बात से दिल टूटा भी
बहुत खूब विनय जी….लिखते रहें…
नीरज
इक ख़ाब माना हमने जिसको
वह छाला बनकर फूटा भी
bahut sunder lines, or thanks bhi vinay ji.
जिस कशिश पे हम मर बैठे
उस कशिश ने दिल लूटा भी
waah behtarin
बहुत बढिया …
सही है भाई.
waah ji saahib bahot khub rahe ye gazal bhi kafiye ko kitni karine se aapne milaayaa hai…wese tha ko ta me likhaa jaa sakta hai sahi kiya hai aapne… badhaayee aapko…
arsh
वह छाला बनकर फूटा भी
🙁 ???
आप सभी के प्रेम और स्नेह का आभार 🙂
bhaiya ji aap to kamal likhte hai, mujhe to bahut acchi lagi aap ki (kuch door tha to kareeb tha) poem……………………thanks alot yaar.