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मेरी ग़ज़ल

वह तेरी पहली नज़र का निशाना याद है

वह तेरी पहली नज़र का निशाना याद है
हमको आज भी तुमसे दिल का लगाना याद है

दोस्तों में कहते थे किसी से प्यार हमें
वह पूछें अगर तो नाम तेरा छुपाना याद है

गरचे तुमने कभी हमको अपना न कहा
मगर तुमसे मिलने का झूठा बहाना याद है

सबब वह जिससे धड़कनें तेज़ हो जाएँ थीं
वह इसी दरवाज़े से तेरा आना-जाना याद है

कुछ कहकर फिर चुप हो जाना यकायक
निगाहें फेर के हमको तेरा उकसाना याद है

न कह पाये हम कभी कि प्यार है तुमसे
पर इज़हार के लिए हौसला जुटाना याद है

किस पल तुम छोड़कर गये मालूम न हुआ
हमको आज भी ज़िन्दगी का अफ़साना याद है

तेरे इन्तिज़ार में जो न कटा एक लम्हा
हमको उस लम्हें का क़िस्सा पुराना याद है

हमको उनका जादू खैंचता रहा बार-बार
तेरी आँखों का सितारों जैसा झिलमिलाना याद है

जब भी कोई पूछता था कैसी दिखती हो तुम
वह सभी से चाँद को तेरे जैसा बताना याद है

गरचे= although, सबब= reason


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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