वक़्त भी देखिए क्या-क्या आइनें दिखाता है
मेरे साथ अश्कों से माज़ी के सफ़्हे मिटाता है
कल तक थी जिसके घर में हमारी आवभगत
आज वही दरवाज़े पर से हमें लौटाता है
सुख और शाद तो मतलब के यार हैं ज़माने में
जब छोड़ जाते हैं दर्द हमें अपनाता है
कल क्या था आज क्या है कल क्या होगा ‘नज़र’
कौन है तेरा यहाँ कौन दुख तेरे बँटाता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४