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मेरा गीत

वज़नी साँसों में पिस रहा है दिन सारा

वज़नी साँसों में पिस रहा है दिन सारा
मुझे आज भी है इन्तिज़ार तुम्हारा

नम है नफ़स-नफ़स मेरे सीने में
क्यों खर्च नहीं होती साँस जीने में

मेरी बाक़ी ज़िन्दगी का तुम ही सहारा
मुझे आज भी है इन्तिज़ार तुम्हारा

नामे-इश्क़ जायेगा मेरा सब-कुछ
क़िस्मत क्यों नहीं कहती आज कुछ

नाख़ुदा कश्ती को कब मिलेगा सहारा
मुझे आज भी है इन्तिज़ार तुम्हारा

‘नज़र’ को नयी ज़ीस्त दी तुमने शीना
जीने का तुमने सिखाया मुझको क़रीना

तेरे ही साथ मैंने हर लम्हा गुज़ारा
मुझे आज भी है इन्तिज़ार तुम्हारा

वज़नी: heavy; नफ़स: breath; नाख़ुदा: boater, sailer;
ज़ीस्त: life; शीना: shine; क़रीना: style


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

3 replies on “वज़नी साँसों में पिस रहा है दिन सारा”

बहुत सुंदर रचना पढने को मिली बहुत अच्छा लगा प्रत्येक शेर के भाव दिल को छू गए वरना यहाँ तो आलम ये है की ==धूप में छान्ब ;मेंहदी रचे पाओ सावन की फुआर कोयल की पुकार ‘किस को बुरा लगता है ==मेरी किस्मत में आग है वरना चांदनी का इंतजार किस को बुरा लगता है

नम है नफ़स-नफ़स मेरे सीने में
क्यों खर्च नहीं होती साँस जीने में”

kya baat hai!
sundar!

BAHUT HO GAYI TERI IBADAT,
AB TUJHSE MILNE KI KOI NA CHAHAT
NA MUJHE AB TERA KHYAL , AB MERA SUKH CHINO KA HAAL
SAB BHUL KAR BAND KAR LI HAI APNI ANKHO KO
AB JANA HAI MUJHE ASMANO KE PAAR

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