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मेरी नज़्म

वो ऐजाज़ है तब्बसुम का

उसकी पाज़ेब आज मेरे हाथों में है तो
लबों से कुछ कहती नहीं, ख़ामोश है
उसके पाँव में झनकती थी तो
मुझसे अनकही बातें कह दिया करती थी
पत्तों पर गिरती बूँदों की तरह
पिछ्ली बारिशों में छम-छम बजती थी

बदन में उसके लिए साँसों की एक लड़ी है
बजती रहती है सीने में हर पल हर घड़ी
उसका नाम ही बजता है मेरी साँसों में
भूलता नहीं उसको भूलने के बाद भी क्यों

वो हवा है, खु़शबू है, फ़िज़ा है, रंग है
वो ऐजाज़ है तब्बसुम का,
माहे-नख़्शब है चाँद उसके आगे
वो शुआ है, सजदा है, आमीन है, दुआ है
वो ज़िन्दगी है, जान है
हाँ, मैं बावला हूँ उसी के इश्क़ में


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

One reply on “वो ऐजाज़ है तब्बसुम का”

हाथ में हैं तो बोलती हैं और पाव में थी तो सब कह देती थी बहुत बहुत बढ़िया कल्पना

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