घट रहा है नूर दीप जलाये कोई
रोशनी की सहर दिखाये कोई
वो मेरा दोस्त है आज उसने कहा
नये फूल मंदिर में चढ़ाये कोई
ख़फ़ी टूटने का बाइस है क्या
पर्दा राज़े-निहाँ से उठाये कोई
नर्म-मिजाज़ हो गर मुक़ाबिल
नाराज़गी किससे जताये कोई
वो काबा हो या उस बुत का चेहरा
पर्दा भला क्यों हटाये कोई
जल्वा-ए-गुल की कहानी क्या है
शरर को शरर जलाये कोई
जबकि वो दस्तनिगर न हो
मुफ़्लिस को क्यों सताये कोई
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’