याद आती हैं फिर वह तारीख़ें
मेरा करना तुम्हारी तारीफ़ें
लिखना पुराने ख़तों को दोबारा
पूछना क्या नाम है तुम्हारा
कुछ न मिले ऐसी शाम के तले
इतना मान ले इतना जान ले
वह साँसों का साँसों तक जाना
क़रीब आकर फिर मुड़ जाना
लिखना पुराने ख़तों को दोबारा
पूछना क्या नाम है तुम्हारा
तेरा मुझे देखकर शरमाना
यारों से दिल की बात छिपाना
है प्यार तो क्यों न कह दो
एक प्रेम-पत्र ही लिखकर दे दो
कुछ न मिले ऐसी शाम के तले
इतना मान ले इतना जान ले
याद आती हैं फिर वह तारीख़ें
मेरा करना तुम्हारी तारीफ़ें
लिखना पुराने ख़तों को दोबारा
पूछना क्या नाम है तुम्हारा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
4 replies on “याद आती हैं फिर वह तारीख़ें”
Hi I am the jyoti. How r u?
great words!
Good morning
With a great light of sun
With the songs of birds
With the great Azaan of Masjid
With the Quraan
With the happiness
With a great smile
And with the morning prayer
Have a nice day
^F^R^O^M
�M�O�R�N�I�N�G�S
First Light
To
�E�V�E�N�I�N�G�S
Last Star
Remember
How
�S�P�E�C�I�A�L�
You Are
G o_O d
M o R n I n G (:
Stay Blessed