याद तो आती ही होगी ना
रात भी आती होगी
चाँद भी आता होगा
छत पर बैठकर
तारे भी गिनती होगी ना
याद तो आती ही होगी ना
जब टूटे तारा कोई
मन से मुझे माँगती होगी
और मन्दिर जाके सुबह
पीपल को ताग़ा बाँधती होगी
और फिर किसी आहट पे
दौड़ती घर से
बाहर आती भी होगी ना
याद तो आती ही होगी ना
मुझको ना पाकर
ख़ुद से बातें करती होगी
और फिर आँसुओं को
आइने में देखा भी होगा
आधी-आधी बातें बहाने से
सहेलियों से करती होगी
जो कोई पूछे तो कभी
झूठ भी कह देती होगी ना
याद तो आती ही होगी ना
कुछ और दिन हैं ये बातें
फिर होगीं रोज़ मुलाक़ातें
ना कोई शिक़वा होगा
ना इतनी दूरी होगी
हर सपना सच होगा
यूँ भी सोचती होगी ना
याद तो आती ही होगी ना
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२